बंदरों का आतंक से जनता परेशान
सभासद वार्ड मैं नही देते हैं कोई घ्यान नगर पालिका परिषद मैं करते हैं आराम
सगीर अमान उल्लाह ब्यूरो
बाराबंकी में बंदरों का आतंक दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। शहर का शायद ही कोई ऐसा मोहल्ला होगा,जहां लोग बंदरों की उग्रता से परेशान न हों। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हर कोई इनके डर से सहमा हुआ है। बंदरों के झुंड छतों और गलियों में घूमते हुए न केवल घरों का सामान बर्बाद कर रहे हैं,बल्कि लोगों पर हमला करने से भी पीछे नहीं हटते।बच्चों और बुजुर्गों पर हमले का खतरा बंदरों की आक्रामकता का सबसे बड़ा शिकार बच्चे और बुजुर्ग बन रहे हैं।मोहल्ले के बच्चे बाहर खेलने से कतराते हैं,और महिलाएं घर के काम करते समय भी सतर्क रहती हैं।बुजुर्गों को घर्म स्थल या बाजार जाने में डर लगता है, क्योंकि बंदर अक्सर उन पर झपट पड़ते हैं।नगर वासियों का कहना है कि उन्होंने कई बार प्रशासन से शिकायत की,लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।वन विभाग की टीम केवल आश्वासन देकर चली जाती है।न बंदरों को पकड़ने की कोई योजना बनाई गई और न ही उनकी बढ़ती संख्या को नियंत्रित करने के लिए कोई कदम उठाया गया।स्थानीय लोगों ने प्रशासन से अपील की है कि बंदरों को सुरक्षित तरीके से पकड़कर जंगलों में छोड़ा जाए।यदि समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं हुआ,तो आने वाले समय में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।वार्ड के सभासद भी नही देते हैं कोई घ्यान कई सभासद ऐसे भी है जो वार्ड मैं नज़र नही आते हैं,वार्ड वासियों का कहना है कि वह दिन भर नगर पालिका के सभासद कक्ष मैं आराम करते हैं जब वार्ड वासी नगर पालिका सभासद से मिलने सभासद कक्ष जाते दरवाज़े पर लिखा है बाहरी आदमी का आना मना है,मायूस होकर लोग वापस आ जाते है अब सम्मसिया यह है कि आखिर सभासद से मिलने कहा जाए, कई बार नगर पालिका परिषद और वन विभाग को शिकायत की है,लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। बंदर हर दिन लोगो के घरों में घुस जाते हैं और सामान बर्बाद कर देते हैं। बच्चे बाहर नहीं खेल पा रहे हैं। प्रशासन को जल्द से जल्द समाधान निकालना चाहिए,स्थानीय निवासी मोहम्मद अहमद समाज का सुझाव,विशेषज्ञों का मानना है कि बंदरों के आतंक से निपटने के लिए सामुदायिक भागीदारी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। साथ ही, वन विभाग को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। यदि प्रशासन जागरूकता अभियान चलाए और समय पर कदम उठाए,तो इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।क्या बाराबंकी के लोग बंदरों के आतंक से मुक्त हो पाएंगे, या प्रशासन की चुप्पी उन्हें और अधिक परेशानियों में डाल देगी? यह सवाल अब हर किसी के मन में गूंज रहा है।